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आपराधिक कानून की ऐतिहासिक व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों और उनके कानूनी वारिसों को दी बड़ी राहत

Author : Moumita Tarafdar

25 August 2025 08:30 AM

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आपराधिक कानून की एक ऐतिहासिक व्याख्या में, सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के पीड़ितों और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को एक बड़ा अधिकार प्रदान किया है। अब वे निचली अदालतों द्वारा आरोपी को बरी किए जाने के फैसले को उच्च अदालतों में चुनौती दे सकेंगे। अब तक यह अधिकार केवल राज्य सरकार या शिकायतकर्ता को ही सीमित रूप से प्राप्त था। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला पिछले सप्ताह सुनाया। पीठ ने कहा कि अपराध से नुकसान या चोट झेलने वाले पीड़ित और उनके कानूनी वारिस अब न केवल आरोपी की बरी होने के खिलाफ, बल्कि हल्की सजा या अपर्याप्त मुआवज़े के खिलाफ भी अपील कर सकते हैं।

58 पृष्ठों के इस महत्वपूर्ण निर्णय को लिखते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “अपराध के शिकार व्यक्ति का अधिकार उस दोषी व्यक्ति के बराबर होना चाहिए जिसे सजा हुई हो और जो दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 374 के तहत अपील का अधिकार रखता है।” पीठ ने यह स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 372 में पहले से ही इसका प्रावधान है, जो पीड़ित को न केवल बरी किए जाने, बल्कि कम सजा या हल्के अपराध में दोष सिद्ध किए जाने के खिलाफ भी अपील करने का अधिकार देता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि “इन अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।”

कानून की व्याख्या का विस्तार करते हुए पीठ ने “अपराध का पीड़ित” शब्द में कानूनी उत्तराधिकारियों को भी शामिल किया है। इसका अर्थ है कि अगर अपील के दौरान पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो उसके वारिस उस अपील को आगे बढ़ा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूर्ववर्ती न्यायिक निर्णयों और विधि आयोग की रिपोर्टों का भी हवाला दिया और कहा कि न्याय प्रक्रिया में पीड़ितों और उनके परिवारों को उचित स्थान मिलना अत्यंत आवश्यक है। यह फैसला भारतीय आपराधिक न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, जिससे पीड़ितों को अधिक अधिकार और न्याय की लड़ाई में प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।

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